भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ बेटी दोपहरी / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
माँ-बेटी
दोपहरी
पाट छोड़कर बहती
पहाड़ी नदी गहरी
चील उड़ी तालों से
वह देखो !
आसमान भर गया
सवालों से
काँच की ख़िड़कियों पर
जैसे इच्छा ठहरी
कहने को खेत मिला
घर छूटा
आँचल में
नदियों को रेत मिला
सागर का नाम बड़ा
आँखों देखी कह री !
माँ-बेटी
दोपहरी
पाट छोड़कर बहती
पहाड़ी नदी गहरी