भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुक्तक-04 / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
आज फिर मौसम सुहाना हो गया
खुशबुओं का है निशाना हो गया।
थी उमस बेहद पसीना चू रहा
अब हवा का आना जाना हो गया।।
हमारे ख्वाब की ताबीर तुम हो
बसी दिल मे वही तस्वीर तुम हो।
यकीं तुमको भले ही हो न इस पर
लिखी जो हाथ मे तक़दीर तुम हो।।
हो रहे सजल हैं नैन, अश्रु हैं बरसे
हैं हुए जवान शहीद, स्वजन हैं तरसे।
कब तक देंगें बलिदान, प्राण का बोलो
अब आज इन्ही के साथ, चलो सब हो लो।।
माँगूँ नित पसार आँचल
सेवा भाव, बुद्धि निर्मल।
परित्यक्ता हो कटु वाणी
पर दुख में हों नैन सजल।।
जिन के तन मन रहें मलिन
उन के लिये रात क्या दिन।
शुभ कर्मों से रहें विरत
जीवन व्यर्थ हुआ पल छिन।।