भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुस्कुराने लग गया / चरण जीत चरण
Kavita Kosh से
फिर से कोई धीरे धीरे पास आने लग गया
मसअला ये है कि मैं भी मुस्कुराने लग गया
कुछ क़दम तक साथ देने वाले तेरा शुक्रिया
तूने ठुकराया तो होश अपना ठिकाने लग गया
छोड़कर जलती हुई या रब मेरे हिस्से की आग
तू कहाँ गैरों की चिंगारी बुझाने लग गया ?
सबके दरवाज़े से होकर लौट आया मेरा दुःख
शाम जब ढलने लगी मेरे ही शाने लग गया
जाम, कश, आवारगी, तनहाइयाँ सब था वहॉं
यार तू भी वक्ते-रुखसत क्या सुनाने लग गया ?