भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी नज़र / गुँजन श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मेरी नज़रें वहीं तक
फैलना चाहती हैं
जहाँ तक प्रेम की मौज़ूदगी है
मैं पहली नज़र में
एक मुजरिम को भी
उसकी माँ बनकर देखना चाहता हूँ !