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मैं वेमुला हूँ / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
ये मेरा देश है लगता क्यों किसी और का है
ये अगर लोकतन्त्र है तो है किस दौर का है
मैं अन्धेरे में ही रहने की आदत डालूँ या बदलूँ
मैं जानता हूँ जानते हो गुरूर ज़ोर का है
हमको कुछ हक़ यहाँ पे थे हासिल अब न हों
ये मामला नहीं दो रोटियों कुछ कौर का है
तू मुझे जान ले पहचान ले मेरा बाजू
तू बता तू कहाँ किसकी तरफ़ किस ओर का है
अब तो मेरी आज़ादी सादी-सी देशद्रोह
मेरा मन भी मगर कोहराम और शोर का है
मैं भी अपमान से जी लूँ कि मैं क्यों मिट जाऊँ
मैं वेमुला हूँ मुझे इन्तज़ार भोर का है