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युध्द / सरिता महाबलेश्वर सैल
Kavita Kosh से
कितने युद्धों की बनूँ मैं साक्षी
हर क़दम की दूरी पर
नींव पड़ती नए युद्ध की
समेटने का क्रम नाकाफी
विस्थापन का विस्तार
उजाड का फैलाव
होता जा रहा अनंत
न आप, न मैं
कदाचित कभी न गुज़रेंगे
युध्द की इति के उत्सव से
यह फसल
आयुधों की लहलहाती
पहुँचाएगी हमें
शायद
सृष्टि के पतझड़ तक
कैसा यह
विनाश का ये खेल ...