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ये कल की फ़िक्र में जीना, ये रोज़ का मरना / रमेश तन्हा

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ये कल की फ़िक्र में जीना, ये रोज़ का मरना
ये महज़ नाम का जीना है, ज़िन्दगी न हुई

उलझ के फ़िक्र में फ़र्दा की ज़िन्दगी करना
ये कल की फ़िक्र में जीना, ये रोज़ का मरना
रहे-तलब में क़दम फूंक फूंक कर रखना

ये सर का दर्द हुआ, मन की शांति न हुई

ये कल की फ़िक्र में जीना, ये रोज़ का मरना
ये महज़ नाम का जीना है, ज़िन्दगी न हुई।