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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास/ पृष्ठ 4
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राक्षस बानर संग्राम
( छंद संख्या 36, 37 )
(36)
रजनीचर -मत्तगयंद-घटा बिघटै मृगराजके साज लरै।
झपटै भट कोटि महीं पटकैं , गरजैं रघुबीरकी सौंह करैं।।
तुलसी उत हाँक दसाननु देत, अचेत भे बीर, को धीर धरैं।
बिरूझो रन मारूतको बिरूदैत , जो कालहु कालु सो बूझि परै।36।
(37)
जे रघुबीर बीर बिसाल, कराल बिलोकत काल न खाए।
ते रन-रोर कपीसकिसोर बड़े बरजोर परे फग पाये।
लूम लपेटि, अकास निहारि कै, हाँकि हठी हनुमान चलाए।
सूखि गे गात, चले नभ जात, परे भ्रमबात, न भूतल आए।37।