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राहत मिलेॅ / बिंदु कुमारी
Kavita Kosh से
दिन नुकैलैं
सुरूज छिपलैं
रात होलै
अन्हार पसरलै
आय सरंगोॅ मेॅ मेघ नै छै
आमावस्या भी नै छेकै
फेरू
चान कैहिनेॅ नी देखाय छै
चहूँ ओर अन्हार छै
गुहार करै छी
मेघ छटें
सरंग साफ हुवेॅ
चान देखावेॅ
राहत हमरा मिलेॅ।