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रूपजी : दो / पवन शर्मा

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पीपळ रै गट्टै ऊपर
बैठ्या रूपजी
जद बात सुणावै
हुंकारो देवै गाम
पंचां बिचाळै
बैठ
बात रो तोड़ काढ़’र
करै जद न्याव
हुंकारो देवै राम
पण रूपजी
जद आपरी
आंतड़ी री
पीड़ गावै
तो गाम-राम
खा पी’र
सो जावै।