भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे कहते हैं / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
वे कहते हैं
स्त्री घड़े के भीतर का
ठहरा पानी है
स्पर्श -मात्र से
हो जाती है अपवित्र
पुरूष बर्फ का टुकड़ा
जितना घुलता है
निखरता है
तो क्या पानी से बरफ़
बरफ़ से पानी नहीं बनता है?