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शब्द और संधि पत्र / अनिल मिश्र
Kavita Kosh से
कितनी रातों के बाद आई है ये सुबह
अपनी-अपनी टाई ठीक करते
बैठ गए हैं शब्द मेज के चारों ओर
पीछे छोड़ आए हैं चीखती घाटियां
जले घर
इस हाल तक पहुंचने के रास्ते में
नागफनियों के जंगल थे
कांटों की खरोंच के निशान लिए
दर्द भी आया है उनके साथ
संधि-पत्र पर बैठते समय
इस बात का ध्यान रखा कि
किसी तरह फिर से फूलों की खेती हो
अंगारा थोड़ा ठंडा हो जाए
और बज्र हो जाए थोड़ा मुलायम
कौन ऊपर होगा कौन नीचे
कौन किसके साथ
ऐसी तमाम तलवारों को म्यानों में रखकर
आपस में गले मिल रहे हैं शब्द