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संग्रह / अजित कुमार
Kavita Kosh से
हमारे शो-केस में जो एक संग्रह सजा था
सीपियों, शंखों, कौड़ियों, घोंघों, घुँघचियों का :
उसे जब भी वे देखते-
रंगों, रूपों, आकारों से
विस्मित-विमुग्ध होते...
उसे जब भी मैं सुनता
आहों, कराहों, चीत्कारों ही नहीं
पुकारों, उद्गारों, खिलखिलाहटों का
एक स्वर-संगम पाता ।