भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संदिरिया के कइसे / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पुतहू सब जुटलइ खेलाड़ी
कि हैब-गैब ससुइया बेचारी

हक न बक चलइ दिल-दिमाग सटकल
डेराल ससुरा के मुहमां हई लटकल
छीनऽ हइ भैंसुरा के परसलका थारी

सौंसे घर छा गेलइ आफत के पहरा
ननदी के चढ़ना दुसवार भेल नहिरा
खोदइ अखाढ़ा नित जहमत हइ भारी

आस लगा कत्ते बेटा पोसलकइ
नितरो-छितरो हो-हो पुतहू परछलकइ
से पुतहू छंटल पटक के पछारी

नकचढ़ी मद में दुनिया भुलइलइ
कुश से हइ मांजल दीदा धोबइलइ
अइसन संढ़िनियन के कइसे सम्हारी!