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सदाकत का तराना / पीयूष शर्मा
Kavita Kosh से
सदाकत का तराना सिर्फ जिसने गुनगुनाया है
सियासत ने उसे हर मोड़ पर रुतवा दिखाया है
हवाएँ नफ़रतों की उसकी हस्ती क्या मिटाएँगी,
सदा जिसने अमन का दीप धरती पर जलाया है