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सब कुछ मेरे सामने / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
सब कुछ मेरे सामने हुआ
हत्या, चाकू और हत्यारा
अब भी मेरे सामने हैं
मगर मैं चुप हूँ
और छिपने की कोशिश में हूँ
वाशिंग मशीन की ओट में
मैं जानता हूँ कि मैं
कहीं भी छिप सकता हूँ:
टीवी के बग़ल में
टू-इन-वन के पीछे
या नये कालीन के नीचे
मगर मैं डर रहा हूँ
कि मैं पकड़ा जाऊँगा
और घसीटा जाऊँगा अदालत में
जहाँ से हत्यारा
मुस्कराता हुआ वापस आयेगा
मैंने सोचा कि मैं
शहर को दस्तक दूँ
मगर शेयर बाजार के शोर में
कुछ भी तो नहीं सुनता शहर
मैं नयी कमीज़ पहन कर
देखता हूँ सामने इस तरह
कि जैसे वहाँ कुछ नहीं है
न हत्या, न चाकू और न हत्यारा