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समझ सुगबुगाई / त्रिलोचन
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समझ सुगबुगाई
नहीं तो कहीं से
धुन आई क्या आई
जो धुन है पहले से
मन की पहचानी
वही चले, चला करे
तो वही कहानी
चादर फिर फैलाई
फिर फिर तहिआई
कहीं से अकेले में
किसी कंठ ने गाया
उसे अगर मेले में
कोई भी सुन पाया
तो सुन कर गति आई
या उठ कर मुरझाई ।