भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँचा / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बातों का क्या
बातों को खेंच-खेंच
ले जाओ, जहाँ
आकाश,
जहाँ तक साँस बात को
बातों के साँचे में ढाले-
कविता हो जाए,

मन तो पर वहीं,
वहीं-
घानी में पेर-पेर निज अपना,
देखा करता पूरे दिन,
बूँद गिरे यदि
कहीं एक तो,
दिन
खाली न जाए।