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साउथ स्टेशन और तुम / अनुराधा ओस
Kavita Kosh से
जब तुम्हारी आवाज
साउथ स्टेशन से
मोबाइल की तरंगों में तब्दील होकर
सुदूर मुझ तक पहुँच रही थी
जानते हो!
उन्होंने मुझ तक
पहुँचने में
कितने पहाड़ों को छुआ होगा
उन जंगलों की जड़ी-बूटियों की सुंगन्ध
भी समेट ली होगी
उस तरफ की नदियों की
शीतल हवा भी
समेट ली होगी
उस स्टेशन पर रुकने वाली,
ट्रेनों ने देखा होगा जरूर,
मुझसे बात करते हुए
शायद रात-रानी ने चुपके से सुन ली हो हमारी बातें
और हवाओं में तैर गई मनमोहन सुंगध
जब तुमने चुम्बन लिया
शायद चूम लिया होगा उमग कर नदी ने रक्तिम कपोल किनारों के
पानी ने नाव को
पत्तियों ने ओस की बूँदों को
समूचा दृश्य साक्षी है इस प्रेम का।