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सुख-क्षण / अज्ञेय
Kavita Kosh से
यह दु:सह सुख-क्षण
मिला अचानक हमें
अतर्कित।
तभी गया तो छोड़ गया
यह दर्द अकथ्य, अकल्पित।
रंग-बिरंगी मेघ-पताकाओं से
घिर आया नभ सारा :
नीरव टूट गिर गया जलता
एक अकेला तारा।
साउथ एवेन्यू, नयी दिल्ली, 6 दिसम्बर, 1956