भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूनापन जाए तो सोऊँ / ताराप्रकाश जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूनापन जाए तो सोऊँ !

यह बैठा है, कैसे बोलूँ
अपना बिस्तर कैसे खोलूँ
यह उलझन जाए तो सोऊँ !

यह जब से आया, गुमसुम है
इसका मौन बड़ा निर्मम है
दुखता दिन जाए तो सोऊँ !

यह मुझसे मिलता - जुलता है
छाया - सा हिलता - डुलता है
अपनापन आए तो सोऊँ !