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स्व स्वयं विश्व / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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ओ मेरे कवि, उठ
अपने से ऊपर तू
अपनों से ऊपर तू
अपने ही सपनों से ऊपर तू
माना स्वान्तः सुखाय
काव्य लिखा जाता है
किन्तु यह तब ही हो पाता है
जब कि वह ‘स्व’ स्वयं
विश्व बन जाता है।
तभी कोई
वाल्मीकि, कालिदास
तुलसी, कबीरदास
सूरदास, मीरा, रवीन्द्र नाथ
सुब्रहाण्यम् भारती
जन्म लेपाता है।
31.12.76