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हड़ताल / पूजानन्द नेमा
Kavita Kosh से
आज़ादी के मुखौटे से
झाँक रही है
आज मोनोक्रेसी
हड़ताल और नारों को
अब कौन सुनेगा?
जन-कीटों पर गैस बरसाकर
और संगीनें तानकर
अकड़कर जीते हैं
कीड़ों के प्रतिनिधि !