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हम हसुआ धार / जयराम दरवेशपुरी

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जगमग जिनगी के लुरठल हम तार ही
खेती के धंधा हे से से लाचार ही

जेठ दुपहरिया में देहिया जरावऽ ही
मटिया के जोत-कोड़ रंगोली सजावऽ ही
सब्भे के जिनगी के हमहीं आधार ही

मांड़ऽ नियन अँखिया के लोर दम पसावऽ ही
मेहनत के मोती हम औघड़ लुटावऽ ही
तइयो देह नंगा हमहीं उघार ही

झेलऽ ही लंद-फंद मीठ जहर बोली
तइरे करेजा में मार रहल गोली
ठहरऽ ने, तोहरा ले हम हँसुआ धार ही

हम्मर कमइयां के दाम तूं लगावऽ हा
हमरे उपजइलका पर मोंछ के पियावऽ हा
गफलत में गवां देलूं चीन्ह अधिकार ही