भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 43 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
सींवणै पछै
कुण राखै है पूछ
सुई-डोरै री
नईं बांधी‘जै
म्हारी अथाग पीड़
छंन्दां रै बंधां
धरती मा री
कूख, जिको जन्में
मा-जायो हुवै