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हाइकु 43 / लक्ष्मीनारायण रंगा

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सींवणै पछै
कुण राखै है पूछ
सुई-डोरै री


नईं बांधी‘जै
म्हारी अथाग पीड़
छंन्दां रै बंधां


धरती मा री
कूख, जिको जन्में
मा-जायो हुवै