भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

149 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैचां कैदो नूं आखया सबर कर तूं तैनूं मारया ने झखां मारया ने
हाये हाये फकीर ते कहर होया कोई वडा ही खून गुजारया ने
बहुत दे दिलासड़ा पूंझ अखीं कैदो लंडे दा जीऊ चा ठारया ने
कैदो आखदा धीयां दे वल होके देशों दीन ईमान निघारया ने
वारस अंध राजा ते बेदाद<ref>बे-इंसाफ</ref> नगरी झूठा दे दिलासड़ा मारया ने

शब्दार्थ
<references/>