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चँहकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे / शृंगार-लतिका / द्विज

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"'मनहरन घनाक्षरी
"(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)"

चहँकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे, बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सुहावने ।
खिलि उठीं एकै बार कलिका अपार, हलि-हलि उठे मारुत सुगंध सरसावने ॥
पलक न लागी अनुरागी इन नैननि पैं पलटि गए धौं कबै तरु मन-भाँवने ।
उँमगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघाँ लागे, फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने ॥१५॥