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सुरेखा कादियान 'सृजना' / परिचय |
ग़ज़ले
धरती से बिछड़ी तो अंबर में बदरा बन के छायी हूँ / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ रात ख़्वाबों से यूँ ही सजी रह गयी / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ मिलन तो था लकीरों में मग़र माँगा विरह मैंने / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ बीत चला है जाने क्या क्या / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ रखकर पत्थर इस दिल पर तरना पड़ता है / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ तेरी चाहत भूल गयी है जीवन को महकाना अब / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ ज़िन्दगी तू कभी मानती ही नहीं / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ ये जो आँखें जब-तब पानी-पानी होती हैं / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ जिस दिन मुझको साँसों ने ठुकराया था / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ अम्बर से टूटा तारा है / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ वो किस्से औ' कहानी से निकलकर कौन आया था / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ अश्क़ आँखों में लिए उस से बिछड़ना है मुझे / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ तुम्हें पूजता था दिया वो बुझा दूँ / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ बनके रहते हैं सिकंदर जो अंदर से डर जाते हैं / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ समझ आता नहीं पाना किसे है / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ तुझे गर दर्द में राहत नहीं अब / सुरेखा कादियान ‘सृजना’ मेरे मौला कभी तो तू मुझे यूँ आज़माने आ / सुरेखा कादियान ‘सृजना’