आकुल अंतर
रचनाकार | हरिवंशराय बच्चन |
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प्रकाशक | सेंट्रल बुक ड़िपो, इलाहाबाद |
वर्ष | जनवरी, १९४३ |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | |
पृष्ठ | ११० |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- लहर सागर का नहीं श्रृंगार / हरिवंशराय बच्चन
- मेरे साथ अत्याचार / हरिवंशराय बच्चन
- बदला ले लो सुख की घड़ियों / हरिवंशराय बच्चन
- कैसे आँसू नयन सँभालें / हरिवंशराय बच्चन
- आज आहत मान आहत प्राण / हरिवंशराय बच्चन
- जानकर अनजान बन जा / हरिवंशराय बच्चन
- कैसे भेंट तुम्हारी ले लूँ / हरिवंशराय बच्चन
- मैंने ऐसी दुनिया जानी / हरिवंशराय बच्चन
- क्षीण कितना शब्द का आधार / हरिवंशराय बच्चन
- मैं अपने से पूछा करता / हरिवंशराय बच्चन
- अरे है वह अंतस्तल कहाँ / हरिवंशराय बच्चन
- अरे है वह वक्षस्थल कहाँ / हरिवंशराय बच्चन
- अरे है वह शरणस्थल कहाँ / हरिवंशराय बच्चन
- क्या है मेरी बारी में / हरिवंशराय बच्चन
- मैं समय बर्बाद करता / हरिवंशराय बच्चन
- आज ही आना तुम्हें था / हरिवंशराय बच्चन
- एकाकीपन भी तो न मिला / हरिवंशराय बच्चन
- नई यह कोई बात नहीं / हरिवंशराय बच्चन
- तिल में किसने ताड़ छिपाया / हरिवंशराय बच्चन
- कवि तू जा व्यथा यह झेल / हरिवंशराय बच्चन
- मुझको भी संसार मिला है / हरिवंशराय बच्चन
- वह नभ कंपनकारी समीर / हरिवंशराय बच्चन
- तूने अभी नहीं दुख पाए / हरिवंशराय बच्चन
- ठहरा सा लगता है जीवन / हरिवंशराय बच्चन
- हाय क्या जीवन यही था / हरिवंशराय बच्चन
- लो दिन बीता, लो रात गयी / हरिवंशराय बच्चन
- छल गया जीवन मुझे भी / हरिवंशराय बच्चन
- वह साल गया, यह साल चला / हरिवंशराय बच्चन
- यदि जीवन पुनः बना पाता / हरिवंशराय बच्चन
- सृष्टा भी यह कहता होगा / हरिवंशराय बच्चन
- तुम भी तो मानो लाचारी / हरिवंशराय बच्चन
- मिट्टी से व्यर्थ लड़ाई है / हरिवंशराय बच्चन
- आज पागल हो गई है रात / हरिवंशराय बच्चन
- दोनों चित्र सामने मेरे / हरिवंशराय बच्चन