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पारिष कौ अंग / साखी / कबीर
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जग गुण कूँ गाहक मिलै, तब गुण लाख बिकाइ।
जब गुण कौ गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाइ॥1॥
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे यह दोहा है-
कबीर मनमना तौलिए, सबदाँ मोल न तोल।
गौहर परषण जाँणहीं, आपा खोवै बोल॥7॥
कबीर लहरि समंद की मोती बिखरे आइ।
बगुला मंझ न जाँणई, हंस जुणे चुणि खाइ॥2॥
हरि हीराजन जौहरी, ले ले माँडिय हाटि।
जबर मिलैगा पारिषु, तब हीराँ की साटि॥3॥740॥
टिप्पणी: ख-प्रति में इसके आगे ये दोहे हैं-
कबीर सपनही साजन मिले, नइ नइ करै जुहार।
बोल्याँ पीछे जाँणिए, जो जाको ब्योहार॥4॥
मेरी बोली पूरबी, ताइ न चीन्है कोइ।
मेरी बोली सो लखै, जो पूरब का होइ॥5॥