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इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था / गुलाब खंडेलवाल

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इन आँसुओं से तुम अपना दामन सजा रहे थे, पता नहीं था
मुझे मिटाकर भी मेरी क़िस्मत बना रहे थे, पता नहीं था

हवा में घुँघरू से बज उठे थे, दिशाएँ करवट बदल रही थीं
किरण के घूँघट में मुंह छिपाकर तुम आ रहे थे, पता नहीं था

दिया हर उम्मीद का बुझाकर, सुला लिया अपना दिल तो हमने
मगर उन आँखों में प्यार की लौ जगा रहे थे, पता नहीं था

ये कैसी बस्ती है जिसकी हद में, गए हैं उठ-उठके लोग सारे!
सभी को मिट्टी के ये घरौंदे लुभा रहे थे, पता नहीं था

कहाँ हैं रंगों की शोखियाँ वे, कहाँ हैं अब वे बहार के दिन!
गुलाब! तुम बाग़ भर में बस एक हवा रहे थे, पता नहीं था