भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की -- / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:34, 11 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{KKGlobal}}


उसने करवा दी मुनादी शहर में इस बात की --
'कोई अब हमसे करे चर्चा न पिछली रात की'

हमने यह समझा कि प्याला है हमारे वास्ते
उसने कुछ ऐसी अदा से मुस्कुराकर बात की

है घड़ी भर दिन अभी खिलते हैं क्या गुल, देखिये
यों तो हरदम लग रही है शह हमारे मात की

राख पर अब उनके लहरायें समुन्दर भी तो क्या
सो गए जो उम्र भर हसरत लिये बरसात की!

आज भाती हो न उसको तेरी पंखडियाँ, गुलाब!
कल मचेगी धूम दुनिया भर में इस सौगात की