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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला / फ़राज़

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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभानेवाला
वही अन्दाज़ है ज़ालिम का ज़मानेवाला

अब इसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मेरा
सख़्त नदीम है मुझे दाम में लानेवाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे इस से
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जानेवाला

तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आनेवाला

मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
कौन आयेगा यहाँ कौन है आनेवाला

मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बतानेवाला

क्या ख़बर थी जो मेरी जान में घुला है इतना
है वही मुझ को सर-ए-दार भी लाने वाला

तुम तक़ल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो "फ़राज़"
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलानेवाला