भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर अखत : आखर पुसब / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:23, 18 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आखर री आँख सूं / सांवर दइया }} [[Ca…)
हां s s
म्हैं इण जोगो कोनी
थांनै तिरपत करण खातर
चढ़ाय सकूं छप्पन भोग
हां s s
म्हैं इण जोगो कोनी
थांरै सिणगार सारू
भेळा कर सकूं माणक-मोती
हां s s
म्हैं इण जोगो कोनी
थांरी पूजा वास्तै
थरप सकूं कोई मिंदर
पण
म्हारै मन रा मालक
सांस-सांस म्हारी
थांरै नांव
थांरै ई खातर
म्हारा आखर अखत
म्हारा आखर पुसब
होश संभाळयां पछै
जोड़ियो औ ई धन
थांरै ई चरणां अर्पित
कबूल करो-
ए आखर अखत
ए आखर पुसब