भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्यक्ति का आचरण विषैला है / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:17, 21 दिसम्बर 2010 का अवतरण
व्यक्ति का आचरण विषैला है
सारा वातावरण विषैला है
क्या सुनाएँ कथा विगत की तुम्हें
अपना हर संस्मरण विषैला है
सुन लो जंगल उजाड़ने वालो
इतना शहरीकरण विषैला है
वो क्या अमृत पिलाएगा जग को
जिसका अंत:करण विषैला है
साँस लेना भी हो गया मुश्किल
आज पर्यावरण विषैला है
रात पहुँचेगी भोर तक कैसे
जबकि पहला चरण विषैला है
क्या गजब है कि आदमीयत का
हर नया संस्करण विषैला है
अब न रस है, न छंद है, लय है
गीत का व्याकरण विषैला है