भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़्वाब मरते नहीं / फ़राज़
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:49, 5 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} ख़्वाब मरते नहीं<br> ख़्वाब दिल हैं न आँखे...)
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें के जो
रेज़ा-रेज़ा हुए तो बिखर जायेंगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जायेंगे
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रौशनी हैं, नवा हैं, हवा हैं
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़ख़ों से भी फुँकते नहीं
रौशनी और नवा और हवा के आलम
मक़्तलों में पहुँच कर भी झुकते नहीं
ख़्वाब तो हर्फ़ हैं
ख़्वाब तो नूर हैं
ख़्वाब तो सुक़्रात हैं
ख़्वाब मंसूर हैं