भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोई नन्हीं आँखें / अक्षय उपाध्याय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 25 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अक्षय उपाध्याय |संग्रह =चाक पर रखी धरती / अक्षय उ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वे आँखें
जिनके बारे में
हर कवि ने गीत गाया है
अभी जतन से सोई हैं

ना ना
छूना नहीं

उनमें बन रहे कच्चे स्वप्न हैं
उम्मीदें आकार ले रही हैं
उनमें कल बड़ा होकर
आज होने वाला है
हो सके तो
जतन से सोई इन आँखों को
अपने गीत दो
अपनी ख़ुशी दो
घटनाओं से भरा इतिहास दो

वे आँखें जागेंगी
और जगने से पहले
सुबह का
एक पूरा सूरज दो