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सिंझ्या: एक चितराम / सांवर दइया
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आभै में पसरै :
कीं ललासी
कीं पीळास
धोरां बैठ्यो म्हैं देखूं
जड़ां सूं जावतो सूरज
मन चितेरो
माण्डै चितराम
चन्नणिया साड़ी बांध
आरती री थाळी लियां ऊभी
मुळकती सुहागण रो !