भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूटयौड़ी पांख्यां वाळी चीड़ी / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 28 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


म्हारै घर रै
टूटयौड़े जंगळै वाळी खिड़की स्यूं
रोजिना आवै एक टूटयौड़ी पांख्यां वाळी चीड़ी

म्है कई बार उदास हूयौ
पण चीड़ी कदै ई नीं
जणा कै बा आपरी टूटयौड़ी पांख्या माथै
पून नै बिठा‘र
आभै री सैर नी कर सकै।
सोचूं:
चीड़ी उदास क्यूं नीं हुवै।