भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निकल आए किधर हम बेख़ुदी में / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:25, 28 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>निकल आये किधर हम बेखुदी में यहाँ तो है अँधेरा रौशनी में न मेरी आ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निकल आये किधर हम बेखुदी में
यहाँ तो है अँधेरा रौशनी में

न मेरी आँख क़ी खुश्की पे जाओ
कोई तूफां छुपा है खामुशी में

तुम्हारी याद ने ऐसा भिगोया
नहा जैसे लिया मैं चाँदनी में

किसे आवाज दूं किसको पुकारूँ
नहीं है दूर तक कोई गली में

छतों को कैसे दीवारें संभालें
यहाँ कमजोरियां हैं नीव ही में

'अनिल' तुमको भला क्या हो गया है
मजा आने लगा आवारगी में