भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता / ज़फ़र
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण
या मुझे अफसरे-शाहाना<ref>उच्चाधिकारी</ref> बनाया होता
या मुझे ताज-गदायाना<ref>सन्तों जैसा</ref> बनाया होता
खाकसारी<ref>नम्रता</ref> के लिए गरचे बनाया था मुझे
काश, खाके-दरे-जनाना<ref>प्रिय के द्वार की धुल</ref> बनाया होता
नशा-ए-इश्क का गर जर्फ दिया था मुझको
उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता
दिले-सदचाक बनाया तो बला से लेकिन
जुल्फे-मुश्कीं का तेरे शाना बनाया होता
था जलाना ही अगर दूरी-ए-साकी से मुझे
तो चरागे-दरे-मयखाना बनाया होता
क्यों खिरदमन्द बनाया, न बनाया होता
आपने खुद का ही दिवाना बनाया होता
रोज़ मामूर-ए-दुनिया में खराबी है ‘जफर’
ऐसी बस्ती को तो वीराना बनाया होता
शब्दार्थ
<references/>