भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरा मेरा इक रिश्ता है / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:02, 2 जनवरी 2011 का अवतरण
तेरा मेरा इक रिश्ता है
मैं प्यासा हूँ, तू दरिया है
दुनिया मुझसे लाख खफा हो
तू ही अब मेरी दुनिया है
मैं हूँ जेठ की तपती धरती
तू रुत की पहली बरखा है
इस दीये की हिम्मत देखो
सूरज के आगे जलता है
याद तुम्हारी होगी शायद
घर आँगन महका महका है