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बताऊँ क्यों अजीब हूँ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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बताऊँ क्यों अजीब हूँ
मैं शायर-ओ-अदीब हूँ

मिले हैं ग़म ख़ुशी नहीं
बहुत ही बदनसीब हूँ

मैं खुद से दूर हो गया
हुज़ूर से क़रीब हूँ

धनी हूँ बात का सनम
मैं आदमी ग़रीब हूँ

हूँ क़ैद में हयात की
मैं एक अन्दलीब हूँ

ओ जानेमन यक़ीन कर
फ़क़त तेरा हबीब हूँ

है तुझसे प्यार, मुझको तू
समझ न मैं 'रक़ीब' हूँ