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तप रहा है सूर्य मध्याह्न का / केदारनाथ अग्रवाल

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तप रहा है सूर्य मध्याह्न का
मस्तक पर तुम्हारे,
आँख से आग
उगलता;
ऐसा है तुम्हारा
प्रकोप

रचनाकाल: ०९-०१-१९६१