भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्रम का वेद / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:03, 9 जनवरी 2011 का अवतरण ("श्रम का वेद / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
चल रही हैं चीटियाँ
लकीर में
एक बिल से दूसरे बिल की ओर
रुकना मुहाल है उन्हें
बीच की यात्रा में
कहीं
बिल से जुड़ी है बिल,
जमीन के जीवन में
न फौज है
न फाटा है
हरेक चींटी ढोए जा रही है आटा
दिन हो या रात
चींटियों की जमात नहीं टूटती
श्रम का वेद
चीटियों ने चलकर लकीर से लिखा है
लकीर से बना देश
श्रम का देश है
ऐसे देश में
न दुःख है
न दरिद्रता।
रचनाकाल: १५-०९-१९७०