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सन्नाटे का लान / केदारनाथ अग्रवाल
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सन्नाटे का लान
दूब की दरी बिछाए
ओस चाटता है, रात में
आसमान से झरी
पवन के पाँव पकड़े
चहारदीवारी में कैद
बाहर हुआती है,
देश की राजनीति
संसदीय लोकतंत्र के पक्ष में
डूब गए सूरज को पुकारती।
रचनाकाल: १३-०७-१९७७, बाँदा