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शाम की शरबतिया / केदारनाथ अग्रवाल
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रोशनी का
सोन-चम्पई लिबास पहने
शाम की शरबतिया
आकाश से जमीन पर आई
महानगर मदरास में
रात हुए तक
नाचते-नाचते दिल और
दिमाग में आदमियों के छाई
जादुई रंग-रूप से समाई
मैंने उसे देखा
और भेंटा भी
लेकिन अब लोप हुई
शरबतिया
रात के अँधेरे में डूब गई दुनिया।
रचनाकाल: ०८-०६-१९७६, मद्रास