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देखा, पास पहुँचकर देखा / केदारनाथ अग्रवाल

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देखा,
पास पहुँचकर देखा
‘हेमहार’ तरु अमलतास को।

मुझको आए याद ‘निराला’!

काव्य-कृती को
मैंने झुककर
नमन किया,
फिर से उनके साथ जिया।

पत्र-पुष्प के
उनके अक्षर
गीत सुने,
गुन-कौरव के
गुरुतर अर्थ गुने।

अतिशय हर्ष-हिलोर हुआ,
भास्वर भाव-
विभोर हुआ!

रचनाकाल: २३-०३-१९९१