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फर्क / श्यामसुंदर भारती

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दुकानदार
आज भी उधार तोलता है
बेचारा कुछ नहीं बोलता है
उधार ही कितना
फर्क सिर्फ इतना
कि सौदा लेने
पहले बापू जाता था
अब बेटी जाती है ।

अनुवाद : नीरज दइया