Last modified on 21 जनवरी 2011, at 17:52

देखा, पास पहुँचकर देखा / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:52, 21 जनवरी 2011 का अवतरण ("देखा, पास पहुँचकर देखा / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखा,
पास पहुँचकर देखा
‘हेमहार’ तरु अमलतास को।

मुझको आए याद ‘निराला’!

काव्य-कृती को
मैंने झुककर
नमन किया,
फिर से उनके साथ जिया।

पत्र-पुष्प के
उनके अक्षर
गीत सुने,
गुन-कौरव के
गुरुतर अर्थ गुने।

अतिशय हर्ष-हिलोर हुआ,
भास्वर भाव-
विभोर हुआ!

रचनाकाल: २३-०३-१९९१